ऐसा ही वर्ष 1974 में लॉर्ड्स मैदान पर भारतीय टीम के साथ हुआ था. साल 1971 में अजित वाडेकर के नेतृत्व में भारत ने इंग्लैंड और वेस्टइंडीज में अप्रत्याशित विजय हासिल की थी. भारतीय क्रिकेट खेमे में खुशी की लहर छा गई थी और विश्व क्रिकेट में हलचल मच गई थी. भारत को क्रिकेट की महाशक्ति माना जाने लगा था. लिहाजा अजित वाडेकर के नेतृत्व में 1974 में जब भारत दोबारा इंग्लैंड गया तो अपेक्षाओं का बाजार गर्म था. लेकिन, लॉर्ड्स के मैदान पर भारत 42 के अपने निम्नतम स्कोर पर आउट हो गया, तो भारतीय क्रिकेट प्रेमियों पर वज्रपात हो गया.
उसी दौरान 1974 में एक कॉर्टून प्रकाशित हुआ था, जिसमें पति अपनी पत्नी को कह रहा था, “आप जरा ठहरो, मैं बाथरूम होकर आता हूं.” इस पर पत्नी ने कहा, “इतनी देर में तो आप पूरी भारतीय पारी देखने से ही वंचित रह जाओगे.” वैसा ही व्यंग्य आज अपनी पत्नी से सुनने को मिला. 19 रन पर भारतीय टीम के 6 विकेट गिर चुके थे. लग रहा था, जैसे कोई सपना तो नहीं देख रहे. मैंने कहा, “मैं नहाकर आता हूं.” पत्नी ने व्यंग्य किया, “तब तो भारतीय पारी ही समाप्त हो जाएगी.”
अब यह फिर साबित हो गया है कि ‘स्विंग’ और ‘सीम’ वाली परिस्थितियों में भारतीय दिग्गज ताश के पत्तों की तरह बिखर जाते हैं. ऐसी मुश्किल परिस्थितियों का सामना सुदृढ़ तकनीक के जरिए ही किया जा सकता है. इसीलिए सुनीव गावस्कर हमेशा कहा करते हैं कि बल्लेबाजों को परिस्थितियों का सम्मान करना आना चाहिए. किस गेंद को खेलना है और किसको छोड़ना है, इसका सही चुनाव करने के लिए गहरी एकाग्रता और तकनीकी कुशलता की जरूरत होती है.
ऑस्ट्रेलिया की बात करें तो कहा जा सकता है कि उन्होंने हार के जबड़े से जीत को खींच लिया. यह टेस्ट क्रिकेट यानी असली क्रिकेट है. अनुशासित गेंदबाजी करके उन्होंने मैच में संघर्ष के साथ आश्चर्यजनक वापसी की. हमेशा भारतीय बल्लेबाजों की प्रशंसा होती रहती है, पर एडिलेट टेस्ट मैच को 3 दिनों में ही गंवाकर भारतीय दिग्गजों ने उपेक्षित भारतीय गेंदबाजों के जबरदस्त प्रदर्शन को फीका कर दिया. जीत की जो राह भारतीय गेंदबाजों ने खोली थी, भारतीय बल्लेबाजों ने अपने लचर प्रदर्शन से उसे बंद कर दिया.
घरेलू क्रिकेट की आईपीएल के मुकाबले उपेक्षा और आईपीएल के प्रदर्शन को टीम में प्रवेश का पैमाना बना लेने की प्रवृति घातक सिद्ध हो रही है. मासूम विकेटों पर आड़े-टेढ़े बल्ले चलाकर रन लूटने वाले कई भारतीय बल्लेबाज टेस्ट क्रिकेट की गंभीर चुनौती को समझ नहीं पा रहे. पृथ्वी शॉ से ओपनिंग करना अब आगे ठीक नहीं होगा. उनका बल्ला सीधा नीचे नहीं आता, बल्कि थर्डमैन की दिशा से आता है और इसीलिए बल्ले और पैड के बीच गैप रह जाता है. दोनों बार इसी तरह वे बोल्ड हुए.
अभी तो तीन टेस्ट मैच बचे हैं. भारत के सबसे बड़े महानायक विराट कोहली (Virat Kohli) स्वदेश वापस आने वाले हैं. विराट अपनी पत्नी के प्रसव के वक्त साथ रहना चाहते हैं. विराट कोहली के बिना तो भारतीय टीम की बल्लेबाजी का आत्मविश्वास और भी खंडित होगा. ऐसे में भारतीय विचार मंडली को अनुशासन और प्रेरणा का नया मंत्र फूंकना होगा. चुनौती बड़ी है, पर उससे पार पाना असंभव नहीं.
*लेखक पद्मश्री से सम्मानित प्रसिद्ध क्रिकेट कमेंटेटर हैं.
First published: December 19, 2020, 3:36 PM IST