संयुक्त मोर्चा की आज की बैठक अहम
पंजाब की 30 जत्थेबंदियों समेत मध्यप्रदेश, हरियाणा, यूपी के सक्रिय करीब 40 किसान संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा की मंगलवार सुबह बैठक बुलाई गई है। यूं तो देश में 400 से अधिक किसान संगठन हैं लेकिन इनकी भूमिका सक्रिय और आक्रामक है। सुप्रीम कोर्ट से बार-बार बातचीत की पहल पर जोर और सरकार के ताजा पत्र के बाद संयुक्त किसान मोर्चा रणनीतिक मंथन को बेबस हुआ है। संयुक्त किसान मोर्चा की बेबसी यह है कि सुप्रीम कोर्ट और सरकार की पहल के बाद भी यदि वार्ता की कोशिश को सिरे से नकार दिया गया तो गलत संदेश जाएगा।
इसलिए अब संयुक्त मोर्चा मंगलवार की बैठक में नतीजे पर पहुंचेगा। हालांकि, संयुक्त मोर्चा ने सोमवार से 11-11 किसानों की क्रमिक भूख हड़ताल और 25 से 27 दिसंबर तक हरियाणा-पंजाब मार्ग में टोल मुक्ति का एलान कर आंदोलन अभी जारी रखा है। भाकियू डकौंदा के बूटा सिंह बुर्जगिल बताते हैं कि सरकार ने जो पत्र लिखा है, उसमें नया कुछ भी नहीं, पर मंगलवार को संयुक्त मोर्चा की बैठक में इस पर चर्चा होगी। सरकार ने नई तारीख नहीं दी है। दूसरी तरफ, बातचीत के पक्षधर ज्यादातर किसान संगठनों को उम्मीद है कि किसान दिवस पर ‘पहल’ हो सकती है। इस बीच सरकार पर दबाव के लिए पंजाब और राजस्थान में किसानों को दिल्ली के लिए लामबंद किया जाना जारी है।
संयुक्त मोर्चा के सामने ‘एकजुटता’ की चिंता
संयुक्त मोर्चा के सामने अब किसान संगठनों में ‘एकजुटता’ को लेकर चिंता बढ़ी है। आंदोलनकारी किसान संगठनों में यूपी, हरियाणा, मध्यप्रदेश, केरल के कई संगठनों का सरकार ने समर्थन जुटा लिया है। नरम पड़े ऐसे संगठनों को संयुक्त किसान मोर्चा भले सरकार का नुमाइंदा बता रहा है, लेकिन सरकार ने भी बातचीत से समाधान निकालने के पक्षधर किसान संगठनों के बीच अपनी पैठ बना ली है। यही वजह है कि अब कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन के बीच इन कानूनों के समर्थक किसान व संगठन भी सड़कों पर उतर आए हैं। सरकार की ओर से खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कृषि मंत्री, कई मंत्री, भाजपा सांसद-विधायक लगातार संवाद और संपर्क कर मोर्चा संभाल चुके हैं। अटल की याद में 25 दिसंबर को फिर पीएम मोदी नौ करोड़ किसानों से संवाद करने वाले हैं। उस दिन किसानों के खाते में करीब 18 हजार करोड़ जारी किए जाएंगे।
आंदोलन की धार कुंद करने से लेकर मान-मनौव्वल की दोतरफा कोशिशें जारी हैं। भाकियू एकता (उगराहा) से विदेशी फंडिंग का लेखाजोखा मांगा गया है। इसी संगठन पर मानवाधिकार दिवस पर दिल्ली दंगा के आरोपियों से लेकर भीमा कोरेगांव के विचारकों की रिहाई की मांग वाले पोस्टर लगाए गए थे। अब पंजाब से जुड़ी भाकियू उगराहा और भाकियू कीर्ति जैसी जत्थेबंदियों का सिंघु बॉर्डर पर संयुक्त मोर्चा से अलग-थलग पंडाल है। इधर, यूपी-दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर राकेश टिकैत और वीएम सिंह का अलग-अलग अपना-अपना मंच है।
‘डेडलॉक’ बनाम ‘डॉयलॉग’
किसान संगठनों में एक धड़ा पूरी तरह से तीनों कानूनों को खत्म करने की मांग पर अब भी कायम है। इनमें पंजाब की ज्यादातर जत्थेबंदियां हैं लेकिन संयुक्त मोर्चा से जुड़े कुछ सक्रिय संगठनों के अलावा देश के बाकी हिस्सों के कई किसान संगठन अब सरकार के साथ दो-दो कदम पीछे हटने का मन बना रहे हैं। नरम पड़ रहे इन संगठनों से किनारा कर संयुक्त मोर्चा अब खुद ‘संयुक्त’ रहने को लेकर चिंतित है। नरमी यूपी, हरियाणा, मध्यप्रदेश के किसान संगठनों की तरफ से साफ दिख रही है। सोमवार को दिल्ली-मेरठ हाई-वे पर भी नरमी दिखी। सुबह बंद तो शाम को एकतरफ का रास्ता खोल दिया गया। चिल्ला बॉर्डर पर यह सिलसिला पिछले कई दिनों से जारी है। संजीव बालियान के अलावा भाकियू के चंद्रमोहन ने पश्चिमी यूपी के खाप किसानों में सेंधमारी कर भाकियू टिकैत के सामने चुनौती खड़ी कर दी है। वीएम सिंह और भाकियू (भानू) पहले ही अलग हैं।
मध्यप्रदेश के शिव कुमार कक्का कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से मीडिया बातचीत में सर्वसम्मति बनाने की ओर इशारा कर चुके हैं। ऐसे में अब आज होने वाली संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक और अन्य किसान संगठनों की भूमिका पर नजरें टिकी हैं। ‘डेडलॉक’ के बीच ‘डॉयलॉग’ की शुरुआत के लिए किसान दिवस अहम साबित हो सकता है।