निर्देशकः मनीष वात्सल्य
सितारेः चेतन पंडित, एडम सैनी, खुश्बू पुरोहित, दयाशंकर पांडेय
जॉनरः क्राइम थ्रिलररेटिंग: 3.5/5
कई बार छोटे बजट और छोटे बजट की फिल्में चौंकाती हैं. मेहनत और लगन से बनाई गई कई कम बजट फिल्में लोगों के जेहन में लंबे समय तक रह जाती है. ‘स्कॉटलैंड’ एक इसी तरह की भावनात्मक यात्रा पर ले जाती है, जिसे एक बार देखना शुरू कर करेंगे तो बीच में छोड़कर उठने का मन नहीं होगा.
हालांकि जैसे ही आप फिल्म के निर्देशक मनीष वात्सल्य के बारे में जानते हैं तो लगता है कि इस शख्स ने कम संसाधनों में शानदार क्राइम थ्रिलर बनाने में महारत हासिल कर लिया है. दरअसल, यही समय है जब मनीष जैसे निर्देशकों को आगे बढ़ना चाहिए. क्योंकि एक तरफ जब हिन्दी सिनेमा में बड़े बजट की फिल्में बेसिर-पांव कहानियों और बेहद ठीले निर्देशन में बन रही हैं, दर्शकों को निराश कर रही हैं, उसी समय में मनीष कम बजट में बेहतर सिनेमा लेकर आए हैं. फिल्म को देखने के बाद इसे मिले 62 इंटरनेशनल अवॉर्ड ऑस्कर 2020 के लिए चुने जाने पर कोई आश्यर्च नहीं होता.
अब कहानी की बात करें तो मूल पटकथा में बहुत ज्यादा कुछ नया ढूंढ़ने पर नहीं मिलेगा, लेकिन उसे पर्दे पर उतारने के अंदाज में हर पल कुछ नया मिलेगा. फिल्म जगत में दुर्भाग्यपूर्ण तरीकों से होने वाले रेप और रेप के बाद रेप पीड़िता का दरिंदों के खिलाफ खड़ा होना, कोई ऐसा विषय नहीं जिसे पहले न दिखाया गया हो, फिर भी यह विषय सभी के दिल जुड़ा होता है. यह कहानी एक स्कॉटलैंड के डॉक्टर (ऐडम सैनी) उसकी बेटी (खुश्बू पुरोहित) के इर्द-गिर्द शुरू होती है.
डॉक्टर बेटी के साथ भारत की यात्रा पर आता है. यहां उसकी जान-पहचान शेलार (चेतन पंडित) से होती है. बाद में शेलार के बेटे और उसके दोस्त मिलकर डॉक्टर की बेटी का रेप कर देते हैं. यही से कहानी में नया मोड़ आता है. इसके बाद फिल्म का प्रोटेगनिस्ट शेलार के ड्राइवर (दयाशंकर पांडेय) और ईमानदार पुलिसकर्मी (मनीष वात्सल्य) की मदद से बदला लेता है. इसके आगे कहानी में तेजी से उतार-चढ़ाव आते हैं जो आपको उठने नहीं नहीं देते.
चेतन पंडित ने और दयाशंकर पांडेय ने बड़ी सहजता से क्राफ्ट को समझते हुए पूरे फिल्म में अपने किरदारों की ग्रिप कमजोर नहीं होने दी है. चेतन को मनीष के निर्देशन में और ज्यादा निखरने का मौका मिला है. वे पहले से ही शानदार अभिनय के लिए जाने जाते हैं. खुश्बू पुरोहित ने भी अपने अभिनय से चौंकाया है. निर्देशक जिस जिम्मेदारी से उन्हें अपनी फिल्म सौंपी थी, उन्होंने ईमानदारी से उतनी ही जिम्मेदारीपूर्वक अपने अभिनय से इसका निर्वहन किया है. मनीष वात्सल्य की एक्टिंग भी उनके डायरेक्शन की तरह ही बेहद चुस्त है. वे अपने किरदार को बस पर्दे पर अदा करते नजर आए.
जबकि बतौर फिल्म की मुख्य भूमिका में डेब्यू करने वाले ऐडम सैनी को उनके आसपास के किरदारों से इतना तगड़ा सपोर्ट मिला है कि उनका किरदार खुद-ब-खुद उभरता चला चला है. हालांकि उनके पास और बेहतर करने की गुंजाइश थी. लेकिन उन्होंने अपने किरदार के दायरे में रहते हुए फिल्म के साथ न्याय किया है. जबकि संजीव झा ने भी अपनी परफॉर्मेंस को काफी बेहतर तरीके से निभाया है.
बात करें फिल्म के लेखक पियूष प्रियांक की तो उन्होंने बहुत ही रोचक स्क्रीनप्ले मनीष को दिया है. उनके डायलॉग्स ने भी एक्टर्स का काफी सपोर्ट किया है. जबकि फिल्म एडिटिंग को भी मंसूर आजमी ने आला दर्जे का कर दिया है. उन्होंने फिल्म को चुस्त बनाने की हर संभव कोशिश की है. फिल्म के गीत-संगीत की बात करें तो इसमें केवल एक ही गाना सोलो गाना ‘मेरे परवर्दिगार’ है. इसे लिखा राजीव राना है और आवाज फिल्म इंडस्ट्री के टॉप सिंगर अरिजीत सिंह ने दी है.
अंत में हम यह कह सकते हैं कि मौजूदा दौर में अगर आप डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कुछ अच्छा कंटेंट ढूंढ़ रहे हैं तो आपको शेमारो मी बॉक्स ऑफिस पर रिलीज हुई इस फिल्म को जरूर देखनी चाहिए.