वेल्लूर मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर और महामारियों के खिलाफ वैक्सीनों से जुड़े ग्लोबल संगठन CEPI की उपाध्यक्ष डॉ. गगनदीप कांग ने तो एक इंटरव्यू में यहां तक कह दिया कि उन्होंने ‘ऐसा कभी नहीं देखा है और यह बहुत ही हैरान करने वाला कदम है.’ दूसरी तरफ, कांग्रेस के शशि थरूर, सपा के अखिलेश यादव जैसे विपक्षी नेताओं ने भी वैक्सीन अप्रूवल को कठघरे में खड़ा किया. इस बहस में वैक्सीन पर विश्वास का मुद्दा कैसे खड़ा होता है?
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रॉयल सोसायटी की फेलो बनने वाली पहली भारतीय महिला वैक्सीन विशेषज्ञ डॉ. गगनदीप कांग.
क्या है विशेषज्ञों की आपत्ति?
वैक्सीनों के अप्रूवल के बाद ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क ने ‘शॉक्ड’ प्रतिक्रिया ज़ाहिर करते हुए कहा कि ‘वैक्सीन के प्रभाव को लेकर डेटा नहीं दिया गया, पारदर्शिता नहीं बरती गई, जिससे जवाब तो खैर क्या, सवाल ही खड़े होते हैं.’ यह प्रतिक्रिया तब आई जब भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल वीजी सोमानी की तरफ से बयान में मंज़ूर की गईं वैक्सीनों को 100% सुरक्षित करार दिया गया, लेकिन इससे जुड़े डेटा को लेकर कोई बातचीत नहीं की गई.
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दूसरी तरफ, भारत की सबसे बड़े स्वास्थ्य विशेषज्ञों में शुमार डॉ. कांग ने टीओआई को दिए इंटरव्यू में साफ कहा कि ट्रायलों में वैक्सीन का क्या असर दिखा, इस बारे में कोई स्टडी या डेटा प्रकाशित या प्रस्तुत नहीं किया जाना हैरान करने की बात है. ‘मैंने आज तक कहीं ऐसा नहीं देखा.’
AIDAN’s immediate response to SEC recommendations to grant Restricted Emergency Use approval to vaccine candidates of @SerumInstIndia& @BharatBiotech@ICMRDELHI @CDSCO_INDIA_INF @BIRAC_2012 @NITIAayog @PMOIndia @ProfBhargava @drharshvardhan @GaviSeth @doctorsoumya @SuchitraElla pic.twitter.com/KuGy0CGdF5
— Malini Aisola (@malini_aisola) January 2, 2021
क्या दोनों वैक्सीनों पर है आपत्ति?
विशेषज्ञों ने दोनों वैक्सीनों को अप्रूव किए जाने की प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं, जबकि भारत बायोटेक की कोवैक्सिन को लेकर ज़्यादा ऐतराज़ जताया गया है. AIDAN ने कोवैक्सिन के अप्रूवल को लेकर बयान में सवाल उठाया कि ‘किन प्रावधानों के तहत SEC ने इस वैक्सीन के अप्रूवल के लिए सिफारिश की, यह स्पष्ट नहीं है.’
दूसरी तरफ, कांग ने माना कि कोविशील्ड को लेकर देश के बाहर कुछ जानकारियां प्रकाशित हुईं. साथ ही, यह भी कहा कि असल समस्या कोवैक्सिन के डेटा को लेकर है. कोविशील्ड के बारे में जो भी जानकारियां हैं, उनसे कम से कम यहां तक तो पहुंचा जा सकता है कि वैक्सीन 50 फीसदी से ज़्यादा तो असरदार पाई ही गई, लेकिन ‘भारत बायोटेक की वैक्सीन संबंधी कोई स्टडी कहां है?’

वैज्ञानिकों और गुलेरिया के बयानों के बाद बिफरे भारत बायोटेक के प्रमुख डॉ. कृष्ण एला.
क्यों भिड़ गए गुलेरिया और एला?
इस पूर मामले में विवाद बढ़ा तो एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कह दिया कि सिरम की वैक्सीन कोविशील्ड को टीकाकरण के लिए अप्रूवल मिला है जबकि भारत बायोटेक की वैक्सीन के संबंध में डेटा पूरा न होने के कारण उसे ‘बैकअप’ के तौर पर सिर्फ ‘इमरजेंसी’ में इस्तेमाल किए जाने का अप्रूवल है. इस पर भड़के भारत बायोटेक के प्रमुख डॉ. कृष्ण एला ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं होता. ‘वैक्सीन वैक्सीन होती है, बैकअप नहीं. लोग हम पर कीचड़ उछालते हैं और हमें अपना कोट साफ करते रहना होता है.’
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क्या लोगों में अविश्वास बढ़ेगा?
विशेषज्ञों ने पारदर्शिता और डेटा के अभाव को लेकर जो सवाल उठाए हैं, उससे कोविशील्ड पर तो कम लेकिन कोवैक्सिन को लेकर शक पैदा होता है. कांग के मुताबिक ‘अपनी वैक्सीन इंडस्ट्री पर हमें गर्व रहा है, लेकिन ये जो हो रहा है, हमारी प्रतिष्ठा के लिए ठीक नहीं है. हम कैसे रूस और चीन से खुद को अलग साबित कर पाएंगे, इसका जवाब नहीं मिल रहा है.’
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बुधवार तक के आंकड़ों के मुताबिक महामारी भारत में 1.04 करोड़ लोगों को संक्रमित कर चुकी है और डेढ़ लाख से ज़्यादा जानें ले चुकी है, उसके लिए वैक्सीन को विश्वसनीय होना चाहिए. कांग ने कहा कि इन हालात में लोग यही सोचकर हैरान हैं कि इतनी तेज़ी से वैक्सीन बन कैसे गई और ऐसे में अगर आप पारदर्शिता भी नहीं बरतते तो हैं तो विशेषज्ञों को अपनी इस सोच पर फिर से सोचना चाहिए.

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वहीं, AIDAN ने कहा कि जबकि दुनिया महामारी की भयावहता देख चुकी है, नया स्ट्रेन देख रही है, ऐसे में इस तरह के अप्रूवल से वैज्ञानिक आधार पर निर्णय लेने वाली इकाइयों में विश्वास कैसे बनेगा? जिस वैक्सीन के बारे में स्टडी पूरी ही नहीं हुई, उसे अप्रूव करने का कोई वैज्ञानिक तर्क कैसे समझा जाए?

वैक्सीन ट्रायलों के समय मेडिकल एथिक्स के भारतीय पत्र के एडिटर अमर जेसानी और बायोएथिक्स रिसर्चर अनंत भान जैसे एक्सपर्ट्स के हवाले से कहा गया था कि भारत को वैक्सीन ट्रायलों को लेकर पारदर्शिता बरतने की ज़रूरत है. अब अप्रूवल के बाद भी बहस यही है कि अगर वैक्सीन डेवलपमेंट और ट्रायल कामयाब ही हुए, तो डिटेल्स बताए क्यों नहीं जा रहे, जैसे दुनिया भर में तमाम कंपनियों और डेवलपरों ने स्टडीज़ प्रकाशित कीं.