बीता साल लगभग सारे ही बुरे मामलों में यादगार बन चुका है. इनमें कोरोना से लेकर आतंकी गतिविधियों का बढ़ना भी हैं. इसी बीच दक्षिण कोरिया से भी एक खबर आई. वहां पिछले साल 275,800 बच्चे जन्मे, जबकि 307,764 लोगों की मौत हुई. वहां की न्यूज एजेंसी Yonhap के ये खबर देने के साथ ही वायरल हो गई. अब सरकार मान रही है कि उसे अपने नियमों में मूलभूत बदलाव की जरूरत है.
दक्षिण कोरियाई सरकार मान रही है कि उसे अपने नियमों में मूलभूत बदलाव की जरूरत है
दक्षिण कोरिया में फर्टिलिटी दर भी सबसे कम की श्रेणी में है. Statistics Korea के मुताबिक साल 2015 से 2019 के बीच लगभग 1 मिलियन लोगों ने शादी की. इनमें से 40 प्रतिशत से ज्यादा जोड़ों के कोई संतान नहीं है. इस आंकड़े के साथ मानें तो ये देश सबसे कम फर्टिलिटी वाले देशों में से एक नहीं, बल्कि खुद सबसे कम फर्टिलिटी वाला देश बन चुका है. साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार यहां स्वस्थ महिलाएं अपने जीवनकाल में औसतन 0.92 संतान को जन्म देती हैं. वहीं वैश्विक फर्टिलिटी रेट 2.5 बच्चे प्रति महिला है.ये भी पढ़ें: हिंदू मां का बेटा शाहजहां, जिसने धर्मांतरण के लिए अलग विभाग बनाया
ये आंकड़ा इसी तरह का रहा तो जल्द ही दक्षिण कोरिया में उम्रदराज आबादी बढ़ जाएगी. उम्रदराज आबादी के युवा आबादी से ज्यादा होने का अर्थ है देश की उत्पादकता का कम होना. इससे न केवल सेना, बल्कि विज्ञान, तकनीक, व्यावसाय जैसे क्षेत्रों में भी देश पीछे हो सकता है. यही कारण है युवा आबादी घटने पर देश चिंतित होते हैं.
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अब यही हाल दक्षिण कोरिया का भी है. वहां के राष्ट्रपति मून जे-इन ने हाल ही में एक कमेटी का गठन किया. इसके तहत कमेटी ने Low Fertility and Ageing Society के लिए योजना बनाई गई, जो इसी साल यानी 2021 से लेकर अगले पांच सालों के लिए प्रभावी रहेगी.

इस राशि का मकसद ये है कि पेरेंट्स आर्थिक दबाव के कारण बच्चों के जन्म को न टालें- सांकेतिक फोटो (pixabay)
फिलहाल इस योजना के जो मोटे पहलू सामने आए हैं, उनमें यही है कि कैसे युवा जोड़ों को परिवार बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन दिया जाए. इसके तहत माता-पिता को हर बच्चे के जन्म पर लगभग 1 लाख 33 हजार रुपए की राशि दी जाएगी. साथ ही साथ हर महीने अच्छी-खासी रकम इंसेटिव के तौर पर दी जाएगी, जो साल 2025 तक बढ़ते हुए और भी ज्यादा हो जाएगी. इस राशि का मकसद ये है कि पेरेंट्स आर्थिक दबाव के कारण बच्चों के जन्म को न टालें.
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लेकिन आखिर क्या वजह है जो जापान के बाद उसका पड़ोसी देश दक्षिण कोरिया भी जन्मदर घटने की समस्या से जूझने लगा? इसकी वजह है औसत खर्च ज्यादा होना. ऐसे में बच्चों के लालन-पालन का खर्च पेरेंट्स पर अतिरिक्त खर्च होता है, जिसे जुटाने के लिए पेरेंट्स को काफी जद्दोजहद करनी होती है.
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साल 2019 में दक्षिण एशियाई अखबार JoongAng Ilbo ने एक सर्वे किया, जिसमें बच्चों की पढ़ाई पर खर्च जानने की कोशिश की गई. इसके आंकड़ों के अनुसार केवल पहले 6 साल की पढ़ाई के दौरान एक बच्चे पर लगभग साढ़े 61 लाख रुपए खर्च होते हैं. ये जुटाना आसान नहीं. दूसरी ओर रियल एस्टेट की कीमत भी वहां काफी ज्यादा है. लिहाजा बच्चों का खर्च जुटाने पर पेरेंट्स अपना घर नहीं ले पाते. ये सारे कारण मिलकर युवा जोड़ों को बच्चा न पैदा करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

दक्षिण कोरिया में की पितृसत्तात्मक सोच भी बड़ी समस्या है- सांकेतिक फोटो
एक और समस्या है, वहां की पितृसत्तात्मक सोच. इस सोच के कारण कामकाजी महिलाओं को घर भी संभालना होता है और बाहर के काम भी करने होते हैं. इसके बीच संतुलन आमतौर पर इतना मुश्किल हो जाता है कि अपनी मांओं को बुरे हाल में देख चुकी युवा पीढ़ी की लड़कियां संतान पैदा करने के बारे में कम सोचने लगी हैं.
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अब बात करते हैं दक्षिण कोरिया के पड़ोसी देश जापान की, जो खुद डेमोग्राफिक बम पर बैठा दिख रहा है. यहां के हालात भी कमोबेश ऐसे ही हैं. बिजनेस इनसाइडर की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर जोड़ों ने संतान जन्म पर ध्यान नहीं दिया तो अगले 20 सालों में यहां की 35 प्रतिशत आबादी 80 साल से ज्यादा आयु वालों की होगी. वहीं अगले 5 ही सालों में यानी 2025 तक जापान का हर 3 में से 1 इंसान 65 साल की उम्र से ज्यादा का होगा.
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बुजुर्ग आबादी बढ़ने का सीधा असर जनसंख्या पर होगा और ये कम होती जाएगी. विशेषज्ञों को डर है कि अगर जनसंख्या न बढ़ाई गई तो अगले 50 सालों में आबादी घटकर महज 80 मिलियन रह जाएगी, और 100 सालों में केवल 40 मिलियन. यानी केवल बुजुर्ग आबादी नहीं बढ़ रही, बल्कि आबादी घट भी रही है.